वसंत पंचमी और पृथ्वीराज चौहान (कविता) 14-Feb-2024
बसंत पंचमी और पृथ्वीराज चौहान
इतिहास एक ऐसा विषय है, जो भूतकाल की याद दिलाता। उत्थान - पतन के किस्से को, यथार्थ रूप में है बतलाता।
वैसे ही इतिहास जुड़ा है, बसंत पंचमी पर्व से। स्वर्णिम अक्षर में वो लिखा है, मस्तक ऊंँचा है गर्व से।
यह दिन हमको याद दिलाता, पृथ्वीराज चौहान को उदारता के साक्षात मूर्ति थे, बख्से हमलावर गोरी के जान को।
गौरी की जब आई बारी, उसने दिखलाई मक्कारी। चौहान को अफगानिस्तान ले गया, दोनों आंँखें उनकी गईं मारी
मृत्यु दंड देने से पहले, महती इच्छा एक जगी थी। शब्दभेदी बाण देख लूॅं, भारी गलती उसने की थी।
चंदबरदाई मित्रता निभाए, संकेतों से इनको समझाए। गौरी बैठा किस स्थान, पद्य विधा में थे बतलाए।
चौहान समझने में किए न देरी, बज गई सहसा ही युद्धभेरी। तवे पर गौरी चोट किया था, चौहान वहीं पर सोच किया था।
अनुमान से बाण चलाये, गौरी की छाती बिंध पाये। दोनों आत्मबलिदान दे दिए, आज यह घटना है याद आए।
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
16-Feb-2024 11:43 PM
शानदार
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Mohammed urooj khan
15-Feb-2024 11:47 AM
👌🏾👌🏾
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Sushi saxena
14-Feb-2024 04:11 PM
Very nice
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